baglamukhi shabar mantra Fundamentals Explained

This mantra should not be used as an experiment or on an innocent particular person, if not, you will need to put up with the implications.

वन्दे स्वर्णाभ-वर्णां मणि-गण-विलसद्धेम- सिंहासनस्थाम् ।

ऋण खत्म करता है और पारिवारिक विकास को बढ़ावा देता है।

अर्थात् सुवर्ण के आसन पर स्थित, तीन नेत्रोंवाली, पीताम्बर से उल्लसित, सुवर्ण की भाँति कान्ति- मय अङ्गोवाली, जिनके मणि-मय मुकुट में चन्द्र चमक रहा है, कण्ठ में सुन्दर चम्पा पुष्प की माला शोभित है, जो अपने चार हाथों में- १.

विलयानल-सङ्काशां , वीरां वेद-समन्विताम् । विराण्मयीं महा-देवीं, स्तम्भनार्थे भजाम्यहम् ।।

पीत – वर्णां मदाघूर्णां, सम – पीन – पयोधराम‌् ।

Lord Shiva, called the Lord of Meditation, compassionately agreed to fulfil her request. He realised that the normal Vedic mantras had been elaborate and necessary arduous schooling, generating them inaccessible to the masses.

भगवती बगला के अनेक ‘ ध्यान’ मिलते हैं। ‘तन्त्रों’ में विशेष कार्यों के लिए विशेष प्रकार के ‘ध्यानों’ का वर्णन हुआ है। यहाँ कुछ ध्यानों का एक संग्रह दिया जा रहा है। आशा है कि बगलोपासकों के लिए यह संग्रह विशेष उपयोगी सिद्ध होगा, वे इसे कण्ठस्थ अर्थात् याद करके विशेष अनुभूतियों को प्राप्त करेंगे। चतुर्भुजी बगला

नियम एवं शर्तेंगोपनीयता नीतिअस्वीकरणहमारे बारे मेंमूल्य निर्धारण नीति

ऋषि श्रीअग्नि-वराह द्वारा उपासिता श्रीबगला- मुखी

बगलामुखी, जिसे बगला के नाम से भी here जाना जाता है, एक हिंदू देवी है जो दस महाविद्याओं में से एक के रूप में प्रतिष्ठित है। बगलामुखी की पूजा करने से भक्तों का भ्रम और गलतफहमी दूर होती है। यह उनके जीवन को स्पष्ट नजरिया देते हैं। बगलामुखी वह देवी हैं, जो अपने उपासकों की समस्याओं को दूर करने के लिए गदा धारण करती हैं।

By Vishesh Narayan Summary ↬ Baglamukhi Shabar Mantra is especially exploited to penalize enemies and also to dethrone the hurdles in everyday life. Occasionally being blameless and without any problems, the enemy usually harasses you for no cause. The mantra eliminates the evilness and strengths of enemies.

‘‘हे माँ हमें शत्रुओं ने बहुत पीड़ित कर रखा है, हम पर कृपाा करें उन शत्रुओं से हमारी रक्षा करे व उन्हें दंड दे‘‘

पीताम्बर-धरां सौम्यां, पीत-भूषण-भूषिताम् । स्वर्ण-सिंहासनस्थां च, मूले कल्प-तरोरधः ॥

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